Friday, January 30, 2009

बदलता मौसम

कसाई सी किस्मत देखो तलवार लिए सामने खड़ी है
उसकी तलवार का एक वार ही काफ़ी होगा
संभालो संभलो, देखो मृत्यु तुम्हारे सामने खड़ी है
सूख जायेंगे नदिया नाले, रेगिस्तान बन जायेंगे समंदर
जिन जंगलों में जीवन है अब तब होगा मौत का बवंडर
कल पुर्जे कुछ काम न आयेंगे, मिटटी से निकले मिटटी ही बन जायेंगे
एक एक पेड़ की चीख को ध्यान से सुनो कुछ कहता है
उन फूल पोधों पत्तों और तनो में एक जीवन रहता है
हमारे घर के बुजुर्ग सा वो हमसे पहले इस धरती पर आया
उसने ही हमारा विष पीकर हमको अमृत पिलवाया
समंदर को ही देख लो, कभी कभी ही रूठता है
हमारे ऊपर का उसका गुस्सा हमपर ही तो टूटता है
उसके घर में सेंध लगा रहे हैं,
बिन बुलाये मेहमान से उसके घर जा रहे हैं
उसकी नदिया रुपी बहनों को अपनी वासना का शिकार बनाते हैं
और फिर उसमें कुछ मुर्दे बहाकर राम नाम की गुहार लगाते हैं
मिटटी से निकला, मिटटी में जाएगा,
तू बता तू और कितना मिटाएगा
कोई बचेगा ही नही, तो अपने मनघडंत शौर्य की गाथा किसे सुनाएगा
जितना उड़ता है हवा में, धरती में चल ही न पायेगा
तेरे अपने शायद न होंगे तब, कुदरत तो फर्ज निभाएगी
तेरे शरीर को शायद आग देने वाला उस वक्त हो न हो
मिटटी अपना फ़र्ज़ निभा तुझे मिटटी बना, अपने घर तो ले ही जाएगी
हवा, धरा, जल, अन्तरिक्ष जहरीले कर दिए तूने
अब कोई शिव विष पीने न आयेगा
तेरे बुरे कर्मो के बदले कोई अपना कंठ नीला न कराएगा
कुछ पेड़ पौधे और लगा जीवन कुछ और तू पा जाएगा
वरना विलुपत होती प्रजातियों में तेरा नाम भी जुड़ जाएगा

1 comment: