इंसान क्या देखता है और क्या पाता है
अजीब विडंबना है, क्या देखूं और क्या पाऊं
यहाँ तो हर बाशिंदे में यमराज ही नज़र आता है
हर कोई काले भैसे पर सवार है
किसी के हाथ भाला तो किसी के पास कटार है
फूल जो लिए फिरे, कहाँ मिलेगा वो
वो तो कहीं अपनी ही दुनिया में खुशगवार है
मन के मनके दोबारा जपने होंगे
कुछ सपने दोबारा बुनने होंगे
राहें कुछ और बदलनी होंगी
वरना खुद को ही राह बनना होगा
यही एक रास्ता है, जिससे न मेरा वास्ता है
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