छयासी लाख योनियों के बाद इंसान का शरीर पाया है
फिर भी हरदम कोसता है, रूठता है, चिल्लाता है, ये क्या माया है
जहाँ गेहूं, चावल बोने थे वहां बंदूकें गोलियां बो डाली
ज़मीन देखो कैसे इसने अपने ही बहन भाइयों के खून से धो डाली
कहीं राकेट लिए उड़ता फिरता है, कहीं मंगल की ओर रुख करता है
पर अपने बगल के पडोसी का दरवाजा खटखटाने से देखो कितना डरता है
बन्दर के हाथ में माचिस की तरह इसके पास ताकत क्या आ गई
ये तो अपनी मैया को भी बाज़ार में जा बेचने से गुरेज़ नहीं करता है
कभी बाज़ारों में नकली चेहरे ओढ़ता, तो कभी फूटपाथ पर आसमान ओढ़ सो जाता है
अपने ही बनाये भूल भुलैया में अपने ही घर का पता भूल जाता है
सेहतमंद खाने तो पका लिए पर हाजमा कच्चा हो चला है
देखो पके बालों वाला इंसान कैसे नादाँ बच्चा हो चला है
टोनिक, दवाएं खूब पी पर धूप पीने से परहेज है
है साला बन्दर पर समझता अपने को अंग्रेज है
महंगे कपडे पहन जिस्म तो ढक लिया पर आत्मा नंगी ही रह गई
शराफत, इमानदारी, इंसानियत गटर में मूत बन बह गई
शहर की भीडभाड भरी सड़कों पर चिम्पांजी सा छाती पीट पीट जीत की हुँकार लगाता है
ओर शाम ढले अपने अकेले घर में पहुँच, हार कर पंखे से लटक जाता है
शाम सवेरे गिरजे, मंदिर जा मेनका बन खुदा को रिझाता है
ओर फिर शराबी रात का दरवाजा खोल किसी गुमनाम तवायफ के कोठे पर चढ़ जाता है
चलेतर, प्रपंच, कूटनीति, दिखावे की जीवन में भरमार है
देखो देखो जरा गौर से इस बन्दर को, जो मानता खुद को जमाने का सरदार है
3 comments:
bahut sundar...
सुन्दर लेखन।
बढ़िया है..
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