Sunday, August 9, 2009

आजा मेरे मौला

दौड़ा दौड़ा मुझे तू थक गया होगा
आजा तेरे पाऊँ दबा दूँ मौला
उस रूखी मस्जिद की महफिल से जुदा
तुझे मीठी सी लोरी सुना दूँ मौला
हवाओं के पंखे घुमा घुमा के
तूफानों की पतवार चला चला के
तेरी रीड की हड्डी भी दुखती तो होगी
तेरी पीठ पे तेल आज लगा दूँ मौला
रोज रोज सुन अजान और अनजान
तेरे कान भी अब तब तरसते तो होंगे
मेरी गली आजा, कुछ रूखा सूखा खा जा
कुछ तेरा भी मन आज बहला दूँ मौला
सब कुछ घुमा के, सब को चमका के
तेरी एडियाँ भी अब फट फटा सी गई है
पहाडों समंदर से सूरज लुड़काते
तेरी आँखें भी अब कुम्भला सी गई हैं
जरा पास आजा, पाँव मुझसे धुलवा जा
तेरी उंगलियाँ अंगूठे चटका दूँ मौला
दौड़ा दौड़ा के मुझे तू थक गया होगा
आजा तेरे पाऊँ दबा दूँ मौला

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