बचपन को छड़ी और थपथपाहट से संवारता अध्यापक,
कभी मार्गदर्शक तो कभी माँ बाप सा डांटता अध्यापक।
जीवन रुपी जटिल मार्ग पर, ज्ञान रुपी सेतु बनाता अध्यापक,
मष्तिष्क के कोरे पन्नों में ज्ञान के अक्षर सजाता अध्यापक।
कभी महात्मा गाँधी तो कभी सरदार पटेल बन जाता अध्यापक,
लडखडाते क़दमों को चलना सिखाता अध्यापक।
माँ की कोख से जन्मे बच्चे को आदमी बनाता अध्यापक,
बूढे बाबा की लकड़ी सा, चूल्हे में बसी गर्मी सा अध्यापक।
कभी अन्धकार में दिए सा कभी प्यास में पानी सा अध्यापक,
अपनी थप्पडों से, अपनी छड़ी की मार से लाखों आसीसें देता अध्यापक।
चाँद, विज्ञान, विमान, अंतरिक्ष, यान समझाता बतलाता अध्यापक,
ऊँचे आकारों और विचारों को धरती पर चलवाता अध्यापक।
दूर खड़ा छिपा मेरी प्रगति को निहारता मेरा अध्यापक ,
मेरा पिता, मेरी माँ, मेरा गुरू मेरा अध्यापक।
8 comments:
very nice ....am happy that there are ppl who still think like that... in the age of googled and wiki'ed wisdom the rightful place of a teacher needs to be ascertained...
thank you so much for your humble comment.
Bhaiya i must say u write very well....keep writting such good n realistic poems.
आपकी की इस कविता को पड़कर आज इस अध्यापक को बहुत ही सम्मान मिला है . बहुत ही सुंदर अक्षरों में आपने एक अध्यापक का असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करा है.... यू ही लिखते रहे आप...... मेरी तहे दिल से शुभ कामनाए आपके साथ है.........
आपकी इस कविता को पड़कर आज इस अध्यापक को बहुत ही सम्मान मिला है . बहुत ही सुंदर अक्षरों में आपने एक अध्यापक का असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करा है.... यू ही लिखते रहे आप...... मेरी तहे दिल से शुभ कामनाए आपके साथ है.........
आपकी इस कविता को पड़कर आज इस अध्यापक को बहुत ही सम्मान मिला है . बहुत ही सुंदर अक्षरों में आपने एक अध्यापक का असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करा है.... यू ही लिखते रहे आप...... मेरी तहे दिल से शुभ कामनाए आपके साथ है.........
kathi, keka,super, thera kahani bahuth aacha hai.
kathi keka super kahani bahuth aachai hai
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