मुश्किल ये है की सबकुछ कितना आसान है
फिर भी तू आज कितना परेशान है
ख़ुद ही ख़ुद से भागता है, जाग कर भी न जागता है
कच्चे धागों की रस्सी से किस्मत खूंटे में बांधता है
कोठी बंगले तूने खूब बनाये, पर घर है क्या तू ना जानता है
मोटर गाड़ी में चलने वाले, कुछ पग चल तू क्यों हांफता है
महंगे भोजन करने वाले, माँ की पकाई दाल फिर क्यूँ मांगता है
अपनी जग को वातानुकूलित कर, उन पहाडों की ओर क्यूँ भागता है
तूने जो चाहा सब पाकर भी ख़ुद को खोया क्यूँ मानता है
हर बारिश के मौसम में तू बच्चा बन कर क्यूँ नाचता है
तूने जिंदगी आसान करने की मशीनें खरीद अपनी मुश्किलें और बढाई
तूने नींद बुलाने भगाने में न जाने कितनो की नींदें चुराई
अब वापस चल वो ताल बुलाते हैं, वो गुलाबी बुढिया के बाल बुलाते हैं
तेरी रोटी कोई और न खायेगा,
तेरा घर तेरी नींदों की तरह कोई और चुरा न ले जाएगा
अभी वक्त पर संभल, शाम तक घर पहुँच जाएगा
तुझे नुक्कड़ पर लेने तेरा बूढा बाप ख़ुद लाठी टेकता आयेगा
वो गलियाँ थोडी सी बदल तो गई हैं,
मगर ईख के खेत की महक नही गई है
कुछ हुक्कों की गुड्गुडआहट में सांसे, अभी भी चल रही हैं
कुछ बूढी होती आंखे अभी भी बर्तन पर मांझने को राख मल रही हैं
आज तू सबकुछ खो अपनों और आप को पा जाएगा
गाँव का एक और बेटा शहर छोड़ अपने खेतों में फिर फसल उगायेगा
कभी राशन की दुकान की कतार में खड़ा हो मुट्ठी भर अनाज लेने वाला
फिर से पूरे मुल्क को रोटी खिलायेगा
2 comments:
very apt.
thanks bro. if its coming from you then ive celebrated deewali today:)
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