कोई बताये सच की जबान क्या है
हर जुबान पर झूठ है, सच की बिसात क्या है
जबान कृतिम शब्दों में उलझ कर रह गई है
उसकी सोचों की साँसे मुर्दों सी डेहे गई हैं
चलो बहुत नकारात्मक सोचा, सकारात्मक सोच बनाते हैं
किसी शमशान में फिर जाकर जीवन के दीप जलाते हैं
शायद इतनी बुरी नही है मेरी दुनिया,
इसको दुल्हन सा फिर सजाते हैं
इसकी सुहागरात में इसके बिस्तर, गुलाब की पंखुडियां बिछाते हैं
शायद दुख बहुत से सुखों को जनम देता है
वो बहुत लेता है पर हाथ खोल खोल बहुत देता है
दुख कुछ कुछ दानवीर कर्ण से होते हैं
ख़ुद ज़मीन को तहस नहस करके फिर उसमें फूल बो देते हैं
जीवन का चक्र कुछ ऐसा ही अजीब है
इंसान दूर रहकर भी वास्तविकता के कितना करीब है
ख़ुद अपने को शतरंज का मोहरा बनाता है
और बाद में शतरंज का खिलाड़ी कहलाया जाता है
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