Saturday, November 28, 2009

शून्य की विडम्बना

शून्य की विडम्बना सिर्फ एक शुन्य ही समझ सकता है
हास्य का पात्र बन कर जीने की कला सिर्फ शुन्य ही जानता है
हर एक को अपने से नहीं जोड़ पाता, किसी से जुड़ता है तो दे जाता है
एक शून्य ही शून्य का दर्द जानता है
अपने ही महत्व को न जान पाता है, सब कुछ खोकर भी पा जाता है
एक शून्य की विडम्बना को सिर्फ एक शून्य ही जान पाता है

Friday, November 27, 2009

उस वक़्त

मेरा जूनून बोतल में बंद जिन्न नहीं
मेरा जूनून शराब की चुस्की के बाद निकली हुंकार नहीं
हज़ारों मोमबतियां जला लो, दुःख मना लो
में तो तभी जलूँगा जब ये सब बुझ जाएँगी
क्यूंकि किसी को तो जलना ही होगा सब बुझने के बाद
मैं कागज़ का चीता नहीं, दूर खड़ा लोमड हूँ
तुम्हारी बची हुई जूठन को भी तो किसी को खाना होगा
किसी को तो ये संसार बचाना होगा
तुम भाषण सुनो, काली पट्टियां पहनों
मैं बस तुम्हे देखता सुनता रहूँगा
मैं तब बोलूँगा जब तुम गूंगे बन जाओगे
क्यूंकि कोई तो आवाज़ उठाने वाला चाहिए होगा उस वक़्त
तुम आपदा का इंतज़ार करो
मैं तब तक कुछ दीवारें और मजबूत कर लूँ
क्यूंकि कोई तो बचा रहना चाहिए उस वक़्त.