Tuesday, August 18, 2009

किस्मत का कुम्हार

मैं कौन हूँ? बस एक कुम्हार
जिसने तुझे मिटटी से प्याला बना डाला
अब ये तेरी इच्छा है की तू पूजा का दीप बन
या फिर बन मय का प्याला
पर मय से मदमस्त हो लोग प्याला गिरा तोड़ डालते हैं
पूजा के दीप फिर भी कुछ दिन और महीने जी जाते हैं
पूजा के दीपो को गिरने का भय नहीं होता
वो तो गंगा में ही बहाए जाते हैं
मिटटी की नियति है, वो फिर एक दिन मिटटी में मिल जायेगी
पर तब इस कुम्हार तक तुम्हारी पुकार पहुँच ही न पायेगी
जिस मिटटी से मैं बना हूँ, वो मिटटी भी मुझे कभी बुलाएगी
उसी मिटटी से फिर एक नया कुम्हार बनेगा,
और फिर कुछ प्यालों की किस्मत लिखी जायेगी

Sunday, August 9, 2009

आजा मेरे मौला

दौड़ा दौड़ा मुझे तू थक गया होगा
आजा तेरे पाऊँ दबा दूँ मौला
उस रूखी मस्जिद की महफिल से जुदा
तुझे मीठी सी लोरी सुना दूँ मौला
हवाओं के पंखे घुमा घुमा के
तूफानों की पतवार चला चला के
तेरी रीड की हड्डी भी दुखती तो होगी
तेरी पीठ पे तेल आज लगा दूँ मौला
रोज रोज सुन अजान और अनजान
तेरे कान भी अब तब तरसते तो होंगे
मेरी गली आजा, कुछ रूखा सूखा खा जा
कुछ तेरा भी मन आज बहला दूँ मौला
सब कुछ घुमा के, सब को चमका के
तेरी एडियाँ भी अब फट फटा सी गई है
पहाडों समंदर से सूरज लुड़काते
तेरी आँखें भी अब कुम्भला सी गई हैं
जरा पास आजा, पाँव मुझसे धुलवा जा
तेरी उंगलियाँ अंगूठे चटका दूँ मौला
दौड़ा दौड़ा के मुझे तू थक गया होगा
आजा तेरे पाऊँ दबा दूँ मौला

इन्कलाब

इन्कलाब ऐसे नहीं आयेगा
थोडा खून दो, थोडा पसीना
कुछ विचार दो, कुछ आकार दो
सूरज से धक्कामुक्की करो
और ज्वालामुखी जमा दो
कुछ रास्ते छोटे करो
कुछ पंख बड़े करो
परिवर्तन में परिवर्तन करो
क्यूंकि इंक़लाब ऐसे नहीं आयेगा