Saturday, May 7, 2011

मेरी मां

कुछ भी रूखा सूखा मुझे खिला, मां भूखे पेट सो जाएगी
मेरी नींदों में शहद घोल उन्हें मीठा बनाने को,
बनिए से शहद ले, बदले में अपनी पाजेब गिरवी रख आयेगी
बचपन में बहुत धोये गंदे कपडे मेरे, आज भी मुझे वो उतना ही मांझती है
आज भी टूटे बटनों को और टूटे सपनो को, ममता की सुई से टांकती है
सारे मन्दिर गिरजे, गुरूद्वारे और मस्जिद उसके आगे सर झुकाते है
देवता भी उसकी पाँव की धूलि पाने को, उसके आँगन कतार लगाते हैं
उसकी गोद से ही च्यवन ऋषि जड़ी बूटियाँ तोड़ ले जाते हैं
उसी की गोद में क्यों आती है गहरी नींद, ये सोच सब हैरान हो जातें हैं
वो अचार रोटी भी देती है तो लगता है छप्पन भोग सा
उसका दिया हर निवाला मुहं लग जाता एक रोग सा
वही एक है जो अपाहिज औलाद को और ज्यादा दुलार देती है
हर बच्चे की नींद के लिए न जाने कितनी करवटें लेती है
मैं कहीं भी रहूँ , मेरी माँ मेरी उम्र बढ़ाएगी
अपनी दुवाओं दवाओं से मेरे मिनट में घंटों
घंटो से दिन और दिन से सालों का इजाफा कराएगी
मैं कितना ही बड़ा क्यूँ न बन जाऊं
मेरी माँ मुझे डपट लगा फिर से बौना बनाएगी
मेरी मां फिर से मुझे पालने में झुला, मीठी लोरी सुनाएगी