Wednesday, October 28, 2009

त्रिवेणी

हम तो साँसे लेने को उतारू हैं
पर वो ही हमें छोड़ चली जाती हैं
क्या हमारे हिस्से में इतनी हवा भी नहीं ?

रोज गूंथता हूँ अपने सपने
पर बडे नमकीन हो चले हैं
मालूम न था आंसुओं में इतना नमक होता है

सोचा था दरिया ऊपर ओढूँ लूँगा
मगर वो भी छलक गया
सर्द हुआ मौसम बहुत
मुआ सूरज भी तो जम गया

राख छानता हूँ कुछ कंकड़ बीनने हैं
उसको मारने का कोई तो हथियार हो
हर तरफ आग लगी है
अब तो आँखों से भी छिड़कने को कुछ न बचा

आते हो और चले जाते हो
सांकल तो खडका दिया करो
थोडी ही सही, कुछ तो खामोशी टूटेगी

कल सूरज मेरे घर चंदा मांगने आया
बोला कुछ आग दे दो, बहुत तंगी है
मैने अपनी हिस्से का दिल तोड़ कर दे दिया
अब तेरे वाले हिस्से से ही जी रहा हूँ
देखना कल कमबख्त दुनिया फूँक डालेगा

सामने से आया और बगल से ही खामोश निकल गया
चलो इतना तो अदब दिखाया की अपनी खुशबू छोड़ गया
इन्ही सड़कों पर तो चले थे साथ हम कभी
अब ये सड़कें तंग हुई तो सड़कों का क्या कसूर ?

रात आई, मेरे चेहरे पर कुछ ठंडी बूँदें गिरा गई
जब आंख खुली तो गर्म आंसू थे गालों पर
कमबख्त को रोना भी ढंग से नहीं आता
भला आंसू भी कभी ठंडे होते हैं?

जिन्दा डूबा तो कैसे?
मुर्दा तैरा तो कैसे ?
क्या सांसें ही इतनी भारी थीं ?
मरते की आंखें अब बंद क्यूँ करते हो
क्या डरते हो मुर्दा दिमाग तक न देख ले ?

जिस्म छोड़ उड़ गया परिंदा
अब दूर से पास वाले को देखेगा
बडे राज खुलेंगे, एक नया षडयंत्र अब उगेगा
मैं तो उड़ गया हु फिजाओं में
तेरा चक्र तो अब भी चलेगा

दिल की धीमी आंच पर
चढा दिए हैं कुछ सपने
पक जायें तो उतार लेना
ध्यान रखना कि दिल जलता रहे !!!

अखबार सा ताबड़तोड़ पढ़ डाला मुझे
काश में एक मोटा उपन्यास होता
अब जो होगा वो उन्हें भी मालूम और मुझे भी.

हम वो हैं जो आंसू भी फूंक फूंक निकालते हैं
क्या करें उन्होने बनिया जो बना दिया
वरना एक वो आलम था
जब बारिश को देख हम हंसा करते थे

बारिश में बबूल उग आया है
पहले तो इतनी न चुभती थी
शायद उसने अपने उसूल बदल लिए होंगे
वरना पहले तो बड़े अदब से बरसती थी

मिटटी कि गुल्लक लगता है भर गई
जिन सिक्कों को एक एक कर जमा किया
वो नोटों में सिमट जायेंगे
फिर कुछ गोताखोर गंगा में दुबकी लगायेंगे
फिर कुछ और सिक्के मेरे पास आ जायेंगे

धधकती कोलतारी सड़क मेरे पाँव का नाप ले गई,
या खुदा क्या अब जूते भी मेरे ही नाप के मारोगे?

Monday, October 26, 2009

संसार का सुनार

हर कोने में गम तलाशता हूँ
हाँ.. मैं गम तराशता हूँ
हर मैं में हम तलाशता हूँ
हाँ मैं इंसान तराशता हूँ
हर कांच में फौलाद ढूँढता हूँ
हर उधाड़ने वाले में बुनकर तलाशता हूँ
हर कोई उधेड़ने में लगा है
हर घर छेदने में लगा है
मैं संगीन नहीं, गुलाब तलाशता हूँ
हाँ मैं गम तराशता हूँ
हजारों दरिया पी गया मैं आज तक
समंदर बन खुद को निखारता हूँ
हाँ मैं गम तराशता हूँ

Wednesday, October 21, 2009

रास्तों की राह

इंसान क्या देखता है और क्या पाता है
अजीब विडंबना है, क्या देखूं और क्या पाऊं
यहाँ तो हर बाशिंदे में यमराज ही नज़र आता है
हर कोई काले भैसे पर सवार है
किसी के हाथ भाला तो किसी के पास कटार है
फूल जो लिए फिरे, कहाँ मिलेगा वो
वो तो कहीं अपनी ही दुनिया में खुशगवार है
मन के मनके दोबारा जपने होंगे
कुछ सपने दोबारा बुनने होंगे
राहें कुछ और बदलनी होंगी
वरना खुद को ही राह बनना होगा
यही एक रास्ता है, जिससे न मेरा वास्ता है

Tuesday, October 20, 2009

बिटिया सी जिंदगी

आज मैं खुद ही अपने बोझ से दब गया
सोखने में इतना मशगूल रहा की निचोड़ना भूल गया
आज जिंदगी निचोडी तो पाया मैं तो अब खाली हूँ
अब क्या सोखुं जिंदगी ये तो बता
तेरा असली रूप तो देख लिया अब कुछ और तो दिखा?
बड़ी मदारी की पोटली लिए फिरती है
हिम्मत है तो मुझे हंसा के दिखा
मैं तो संत हूँ, चिलम पी सो जाऊंगा
तुझे जगाने जिंदगी ये बता कौन आयेगा?
तूने अपने को मुझे दिया तो क्या एहसान किया?
जा दफा हो मैने फिर भी तुझे माफ़ किया
गर मुझे पता होता तू ये गुल खिलाएगी
मेरे शरीर से जोंक सी चिपक जायेगी
तो मैं छड़ी से तेरी खबर लेता, कुछ बड़ी सजा देता
मगर बाप हूँ तेरा, बिटिया को न मारूंगा
तूने तो दुःख दिए मगर मैं सुख दे तुझे संवारुंगा

झूठा प्रचंड

उम्मीद की डोर पकडे चलो
सपनो को जकडे चलो
मन भारी हो तो बाँट बना कुछ दुःख तोल लो
किसी का कुछ कहा सुनो और किसी से कुछ बोल लो
हर दिन एक अंग मारता है तुम्हारा
उस अंग के मरने से पहले उसकी पोटली भी खोल लो
सपने पूरे हों या रह जायें अधूरे
इस फ़िक्र को छोड़ साधू की मैली चादर ओड लो
पानी है, बहेगा, आंसू हैं, बहेंगे
बस उनकी दिशा किसी और की बजाय अपनी और मोड़ लो
तुम प्रचंड हो, तुम अखंड हो
चाहे झूठ ही सही, इस विचार को अपने से जोड़ लो

वक़्त की जड़

रोज रोज यादें निचोड़ता हूँ
हर देखे हुए सपने की धूल हटाता हूँ
कभी उन यादों के बाल बहाता, और कभी उन्हे सहलाता हूँ
बच्चे की तरह उन्हे लोरी सुला खुद उनमें सो जाता हूँ
मन की बावली से प्यास नहीं बुझती, तो कुछ आंसू पी लेता हूँ
तेरी उन यादों की अंगुलियाँ पकडे कुछ कदम और चल लेता हूँ
बड़ी शातिर दुनिया है, सुना है साये भी चुरा लेती है
इसीलिए तुझे मन में लिए घूमता हूँ, और सांकल कस देता हूँ
वक़्त और मन बड़े भारी है, इसीलिए कई बार हांफ सा जाता हूँ
कुछ साँसे ज्यादा जिंदगी से उधार मांग आता हूँ
वक़्त का क्या है, उसे तो काटना ही होगा
इसीलिए उसे और बड़ा करने को उसकी जड़ में पानी दे आता हूँ

Saturday, October 17, 2009

दुवाएं

हम तो वो राजा हैं जो तेरी बारात में भी नाचें गायेंगे
खुद पीयेंगे अश्क मगर औरों को जाम पिलायेंगे
हमारी अर्थी को तुम कन्धा दो या न दो
तुम्हारी डोली को हम जरूर कन्धा लगायेंगे
हम काफिर नहीं, जो जहर खा लेंगे
हजारों जहर हमारे अन्दर ही दफ़न हैं, हम कहाँ मर पायेंगे?
तुम्हारी शादी के दिन अगर शेहनाई जोर से बजे तो हैरान न होना
अपनी सारी सांसे उस दिन हम शेहनाई में फूँक उसे बजायेंगे
गर्क से बने गर्क में पले और गर्क में ही मर जायेंगे
अपने हिस्से की जन्नत की वसीयत तेरे नाम कर जायेंगे
तेरी मोह्हबत तो बहुत खूब रही
हम तो तेरे दिए दर्दों को भी तेरी मोहब्बत समझ
तुझे और दुवाएं दे जायेंगे