Tuesday, October 20, 2009

बिटिया सी जिंदगी

आज मैं खुद ही अपने बोझ से दब गया
सोखने में इतना मशगूल रहा की निचोड़ना भूल गया
आज जिंदगी निचोडी तो पाया मैं तो अब खाली हूँ
अब क्या सोखुं जिंदगी ये तो बता
तेरा असली रूप तो देख लिया अब कुछ और तो दिखा?
बड़ी मदारी की पोटली लिए फिरती है
हिम्मत है तो मुझे हंसा के दिखा
मैं तो संत हूँ, चिलम पी सो जाऊंगा
तुझे जगाने जिंदगी ये बता कौन आयेगा?
तूने अपने को मुझे दिया तो क्या एहसान किया?
जा दफा हो मैने फिर भी तुझे माफ़ किया
गर मुझे पता होता तू ये गुल खिलाएगी
मेरे शरीर से जोंक सी चिपक जायेगी
तो मैं छड़ी से तेरी खबर लेता, कुछ बड़ी सजा देता
मगर बाप हूँ तेरा, बिटिया को न मारूंगा
तूने तो दुःख दिए मगर मैं सुख दे तुझे संवारुंगा

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