Monday, July 13, 2009

माइकल जैक्सन की मौत

सुबह शाम टीवी पर किसी के मर जाने की खबर आ रही थी
लालता प्रसाद की जोरू रो रो कर हाहाकार मचा रही थी
" अरे माइकल जैक्सनवा मर गवा, हमार जैक्सनवा मर गवा"
का घोष लगा विलाप के सुर में गा रही थी
लालता प्रसाद के होश गुल थे, उसके पास २० रुपये कुल थे
"ई ससुर माई का लाल जैकिसनवा कौन बा, लागत है मेहरारू का भाई बा"
बस आव देखा न ताव, लालता प्रसाद ने दौड़ लगाई
बनिए की दूकान के आगे अपनी सरपट को लगाम लगाई
" बाबूजी हमार साला मर गवा, हमऊ का थोडा उधार चाही"
"टीवी माँ खबर फैली बा, माई का लाल जय किसन अब जिन्दा नाही"
ये सुन बनिए का सर चकराया, उसके समझ में एक विचार आया
झट फ़ोन कर उसने टीवी चैनल के संवाददाता को बुलवाया
भारी भरकम कैमरे लिए टीवी चैनल का हुजूम दौड़ा चला आया
लालता प्रसाद के साक्षात्कार लेने वालों की लाइन लग गई
"माइकल जैक्सन का भारतीय जीजा" की हेडलाइन अखबारों में छप गई
लालता प्रसाद की जोरू के तेवर देखने लायक थे
उसके आगे तो आज सारे नालायक थे
वो कोठी की मेमसाब की फटी साडी पहन चुलबुला रही थी
हर सवाल के जवाब में " जस्ट बीट ईट " गा रही थी
पूरे देश में लालता प्रसाद रातों रात मशहूर हो गया
उसका आल इंडिया टूर किसी चैनल और प्रायोजक से अप्रूव हो गया
वाह री चैनल पच्चीसी की माया,
एक का नहीं तूने तो करोडो का बेवकूफ बनाया
ऐसे ही ये सब बेवकूफ बनते रहेंगे,
अभी कई मौतें हैं और आयेंगी ऐसी
जिसमे कई लालता प्रसाद बनते बिगड़ते रहेंगे

Friday, July 3, 2009

बन्दर की छलांग

चाँद सूरज पर जाने को इंसान छलांग लगा रहा है
देखो कैसे उसका अन्तरिक्ष यान मंगल गृह जा रहा है
अपनी घर में तो सेंध लगा ही ली,
अब और कुछ सत्यानाश करने का विचार बना रहा है
खुद को तो जीत न पाया कभी
अब आकाशगंगा को हराने की जुगत लड़ा रहा है
धरती पर ठीक से न चल पाने वाला
देखो कैसे कुदरत को दोड़ना सिखा रहा है
अपनी ही तकनीक के औजारों से
देखो मूर्ख कैसे अपनी ही कबर बना रहा है
देखो कैसे बन्दर इतरा कर छलांग लगा रहा है

Thursday, July 2, 2009

दिल और दिमाग

कभी खुद से बातें कर के देखा है ?
दिल और दिमाग के द्वंद युद्घ का कभी कोई परिणाम देखा है
दिमाग से चलो तो कश्मीर फिलिस्तीन तिब्बत सा हाल पाओगे
दिल से सोचो तो जर्मनी की दीवार गिरा एक हो जाओगे
कितने ही सम्मेलन या शिखर वार्ताएं कर लो
आदमी के दुःख दर्द को समझो तभी देश चला पाओगे
संत सी सोच चलो तो कुछ कांटे तो चुभेंगे ही
चोर सी सोच में तो कांटे ही राह बन जायेंगे
महुवे से सब्जी तरकारी बना लो या फिर शराब
दिल से सोच लो या दिमाग से, दोनों की ही है अलग बात
एक गणित सी जटिल सोच बनाता है और दूसरा जटिल को सरल
दिल और दिमाग की लडाई में दोनों ही है अविरल

लालता प्रसाद का घर

जोरू टीवी देख बुद्धिमान हो रही थी
लालता प्रसाद की नींदें हराम हो रही थी
अढाई हज़ार रुपईया महिना की पगार, और ऊपर से जाफरानी ठर्रे का खर्चा
हर महीने बनिए का मिल जाता एक और उधार का पर्चा
कलुआ और देवकलिया भी स्कूल जाने लगे थे
उनके मास्टर भी न जाने क्या क्या पाठ पढाने लगे थे
लुगाई का क्या है, वो तो कोठी में झाडू पोचा कर आती है,
मेमसाब की फटी साड़ी को पहन, प्रियंका चोपडा बन जाती है
न जाने क्या क्या उनके टीवी पर देख के आती है
रात को अजीबोगरीब उलूल जलूल हरकतें कर रात भर जगाती है
कब सुबह होती है और कब रात, लालता प्रसाद का हर दिन हर नयी रात
पास की कोठी के सभरवाल जी की हालत खस्ताहाल है
दिल ने साथ छोड़ डाला, जोरू का भी बुरा हाल है
ठर्रा नहीं वो अंग्रेजी का नशा करते हैं
माँ बहिन की तो नहीं पर अंग्रेजी में गाली जरूर बकते हैं
कलुआ और देवकलिया की तरह उनके बच्चे भी स्कूल जाते हैं
पडोसी बताते हैं वो स्कूल में तो नहीं पर सिनेमा हाल में पाए जातें हैं
बनिया तो परेशान नहीं करता पर रिकवरी एजेंट कभी कभार घर आते हैं
एक आध थप्पड़ और कभी कभार एक आध घूँसा रसीद कर जाते हैं
लालता प्रसाद के घर न नलका, न बिजली, न पानी है
फिर भी कलुआ और देवकलिया के लिए वो सपनो की धानी है

सपने ने मुझे देखा

एक रात एक सपने ने मुझे देखा
बोला... तुम तो बहुत गुणवान हो,
ये क्यूँ नहीं करते, वो क्यूँ नहीं करते
ऐसा क्यूँ नहीं करते, वैसा क्यूँ नहीं करते
ये करोगे तो ये हो जायेगा, वो करोगे तो वो हो जायेगा
सारा जटिल गणित देखो कितना सरल हो जायेगा
मैं कुछ न बोला, बस टकटकी लगाये देखता रहा
सुबह ने बहुत सरलता से लील डाला उस सपने को
और फिर मैने उस सपने को देखा
श्रींगार रहित, अपने असली रूप में
सपना मुझे देख रो पड़ा
आज मैने उस सपने का फिर से श्रृंगार किया
मेरा सपना वो नहीं जो मुझे बतलायेगा
मेरा सपना वो है जो सच हो सुबह को लील जायेगा
सपना मेरा वो नहीं जो रात को सुनहरा बनाएगा
सपना मेरा वो है जो दिन को प्रकाश दिखलायेगा