Thursday, July 2, 2009

लालता प्रसाद का घर

जोरू टीवी देख बुद्धिमान हो रही थी
लालता प्रसाद की नींदें हराम हो रही थी
अढाई हज़ार रुपईया महिना की पगार, और ऊपर से जाफरानी ठर्रे का खर्चा
हर महीने बनिए का मिल जाता एक और उधार का पर्चा
कलुआ और देवकलिया भी स्कूल जाने लगे थे
उनके मास्टर भी न जाने क्या क्या पाठ पढाने लगे थे
लुगाई का क्या है, वो तो कोठी में झाडू पोचा कर आती है,
मेमसाब की फटी साड़ी को पहन, प्रियंका चोपडा बन जाती है
न जाने क्या क्या उनके टीवी पर देख के आती है
रात को अजीबोगरीब उलूल जलूल हरकतें कर रात भर जगाती है
कब सुबह होती है और कब रात, लालता प्रसाद का हर दिन हर नयी रात
पास की कोठी के सभरवाल जी की हालत खस्ताहाल है
दिल ने साथ छोड़ डाला, जोरू का भी बुरा हाल है
ठर्रा नहीं वो अंग्रेजी का नशा करते हैं
माँ बहिन की तो नहीं पर अंग्रेजी में गाली जरूर बकते हैं
कलुआ और देवकलिया की तरह उनके बच्चे भी स्कूल जाते हैं
पडोसी बताते हैं वो स्कूल में तो नहीं पर सिनेमा हाल में पाए जातें हैं
बनिया तो परेशान नहीं करता पर रिकवरी एजेंट कभी कभार घर आते हैं
एक आध थप्पड़ और कभी कभार एक आध घूँसा रसीद कर जाते हैं
लालता प्रसाद के घर न नलका, न बिजली, न पानी है
फिर भी कलुआ और देवकलिया के लिए वो सपनो की धानी है

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