Thursday, August 9, 2012

मुसद्दियों का राज

ये गड्ढों का शहर है, यहाँ सडकें न ढूंढिए
तमाम आवाम यहाँ खुदा के रहम पर चलती है
यहाँ जिन्दा दफन हो जाते हैं, यहाँ मुर्दे न ढूंढिए
तकलीफों की रूहें यहाँ आहें उगलती हैं
बड़ी मौकापरस्त हैं जिंदगी, कभी भी भाग जाती है
मौत हर नुक्कड़ पर बैठी है और चुंगी वसूलती है
आला कमानों की फौजें रोज जिस्मों को दाग जाती हैं
इन्कलाब सो रहा है, मुसद्दियों का राज है
दफा हो जाओ तुम सब जिन्हे हिन्दोस्तां पर नाज़ है

Wednesday, August 8, 2012

मुस्सदी

कसाब और अजमल को फांसी कभी ना होगी
अब एक नयी रानी झांसी की कभी न होगी
नहीं होगा पैदा कोई चन्द्र शेखर आज़ाद
अब न होगा कोई अन्याय के विरुद्ध फसाद
क्यूंकि अब एक नयी फसल उग आई है
इनकी सोच सच में बड़ी हवा हवाई है
ये पल भर में बिल गेट्स बन जाना चाहते हैं
इन्हें घंटे में पके भोजन से ज्यादा २ मिनट मैगी नूडल भाते हैं
ये प्यार बस जरूरत के लिए करते हैं
इन्हें वादे और रिश्ते बहुत अखरते हैं
वैसे तो ये भी देशभक्ति का नारा गाते हैं
पर इनके नारे सोशल नेटवर्किंग साइटों तक ही सिमट जाते हैं
फक यू, डैम यू, डूड वाट्स अप, आल इज कूल की भरमार है
मेरे देश के युवा के पिछवाडे के नीचे आज एक महंगी बाइक और कार है
कसूर तो हम जैसे कुछ मुसद्दियों का भी है
सफेदपोश बने कुछ फिसड्डीयों का भी है
पैसा तो कमा लिया पर औलाद को सींचना भूल गए
जेबखर्चा दे दिया पर उन्हें अपनी बांहों में भींचना भूल गए
अभी भी वक़्त है इनके जीवन में कुछ जज्बा बो दो
इससे पहले ये रोयें तुम ही इनके आगे झुको और रो दो
नयी फसल खुद ही देखना लहलहा जाएगी
फिर से एक दिन हमारे देश में क्रांति आ जाएगी

Monday, August 6, 2012

ये साली जिंदगी

अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो, अस्सी नब्भे पूरे सौ की रट लगाती ये साली जिंदगी
कभी हुमा खान, सुलेमान, कादर खान तो कभी बियाबान बन जाती ये साली जिंदगी
बिलकुल औरत की तरह है, समझ से परे है, कभी बकवास तो कभी जिरह है
फिर भी रोज सुबह नींद से जाग जाती है, काम वाली बाई की तरह सुबह सुबह आ जाती है ये साली जिंदगी
अपने मटके झटके ठुमके झुमके दिखा रोज दिल बहलाती है ये जिंदगी
तो कभी गम के थपेडे दे दारु पीने पर मजबूर कराती है ये जिंदगी
इस जहाज पर न जाने कितने चढते उतरते, आते जाते रहते हैं, उडने का नाम है ये जिंदगी
कुछ को महबूब, कुछ को दोस्त और कुछ को दुश्मन बना जाती है ये जिंदगी
कभी टिच पिच, टिप टॉप, शुं शां हो जाती ये जिंदगी
तो कभी ढुस, फुस्स, काएं काएं दायें बायें हो जाती ये जिंदगी
कभी टोटे से काम चलवाती, कभी आबकारी अपनाती तो कभी ठेके पे बुलाती जिंदगी
तो कभी अठन्नी रुपैया चुपके से जेब में डाल जाती ये जिंदगी
कुछ करने का नाम है ये जिंदगी, रोज तरने का नाम है ये जिंदगी
ठीक औरत सी है, समझ से परे है, महबूबा, चुडहैल, रखैल खूंटे का बैल है ये साली जिंदगी
कभी पेटीकोट पहन बेलन चलाती है, तो कभी राशन की लाइन में गधा बनवाती है ये जिंदगी
रोज नेताओं नौकरशाहों आला कमानों के आगे माथा रगड़ वाती है ये जिंदगी
इसे जी लो, जी भर पी लो फिर न आयेगी ये साली जिंदगी
इसकी फाड़ दो, रोज कुछ पोंछ झाड दो वरना तुम्हारी फाड़ जाएगी ये साली जिंदगी