Wednesday, May 20, 2009

लालता प्रसाद की नींद

नई सरकार बनी, पब्लिक जश्न मना रही है
अभी भी २५ रुपईया किलो टिंडे की सब्जी बना रही है
कहीं आडवाणी मुह लड़काए बैठा है
कहीं सोनिया दूध मलाई खा रही है
देखो प्रजातंत्र की सरकार कैसे शराबियों सा शोरगुल मचा रही है
ये सारे ढोल नगाड़े जल्द ही शाम से ढल जायेंगे
फिर से ये सारे मंत्री संत्री प्रेम चोपडा बन जायेंगे
मनमोहन देसाई की फिल्मों सा पुराना नज़ारा है
हर मंत्री पांच साल में आता जाता बंजारा है
कल फिर लालता प्रसाद सोनिया मनमोहन को कोसेगा
मोहल्ले का बनिया फिर उसका ३०० रुपये का उधार रोकेगा
फिर चुनाव आयेंगे, फिर कुछ जोकर चीखेंगे चिल्लायेंगे
सर्कस में फिर कुछ जानवर अन्दर बाहर से शामिल जो जायेंगे
सवाल ये नहीं की कब तक ये चलेगा
सवाल ये है की लालता प्रसाद कब नींद से जगेगा
मिस्टर वर्मा, शर्मा कुछ न कर पायेंगे
वो तो बाबु हैं, बाबूगिरी में जिए और वहीँ मर जायेंगे
लालता प्रसाद जिस दिन जागे, सुबह तो वहीँ ही आयेगी
प्रजातंत्र की ताज़ी हवा, तभी देश को आजाद कराएगी

Sunday, May 17, 2009

ब्रह्माजी की नारी

कभी कभी एक नारी ही क्यूँ दूसरी नारी की दुश्मन होती है
क्यूँ किसी की साड़ी किसी दूसरी की साडी से ज्यादा सफ़ेद होती है
कोई पाउडर तेल लगावे तो दूसरी झुरियों को छिपावे
फिर भी "मैं तुझ से ज्यादा सुंदर" का शंखनाद जोर जोर से बजावे
हिसाब से चलो तो हर औरत के हिस्से एक मर्द आयेगा
फिर भी पाउडर तेल लगाने का खाका भला किसकी समझ में आयेगा
अगर वो मर्द उसका ही है, तो भला वो पाउडर तेल क्यूँ लगावे
नारी के अन्दर के भेद देख तो भाई ब्रह्म भी चकरा जावे
लगे है की पाउडर, इतर से मर्दों को रिझाया जा रिया है,
फिर भी उसका मर्द घर की कामवाली से चक्कर क्यूँ चला रिया है?
अब मर्दों की क्या बात करें, वो तो उनकी नज़रों में जानवर हैं,
फिर जानवरों को प्रेम से निवाला क्यूँ खिलाया जा रिया है ?
भैया बहुत कनफूजन है, कोई तो आके गुत्थी सुलझाओ
ब्रह्माजी तो हार गए, अब किसी और केन्ड्डीडेट को तो आगे लाओ ?

Friday, May 15, 2009

एक बाँध का सब्र

ज्यादा बुद्धिमान होना भी एक अभिशाप है
या कुछ ज्यादा ही पा लेना फिर पाप है
छलकोगे तो कहाँ बांटोगे अपनी आप को ?
यहाँ तो सर कटे शवों की भरमार है,
हर विक्रम के कन्धों पर बैठा एक वेताल है
बाँध का सब्र भी तो टूटता होगा कभी
उसके सीने में भी बह जाने का बीज उगता होगा कहीं
चलो आने दो उस पल को भी एक दिन अपनी और
छलकने दो, टूट और बह जाने दो उसे भी एक दिन
सारे वेताल अपने आप ही हवा में हवा हो जायेंगे
उस दिन कुछ सुकरात मरेंगे और कुछ यीशु पैदा हो जायेंगे

Wednesday, May 13, 2009

सपनो के मोजे

सब्जबागों में पले सपने कोई अब तक सच न कर पाया,
धूल के तिलक में चन्दन की खुशबू कभी न कोई ला पाया.
कौन कहता है सपने सांकल नहीं खड़खडाते,
कुछ लोग बस सपनो को देख ही नहीं पाते.
हिमालय की पूजा करो तो शिखर चढ़ ही जाओगे,
वरना उसके उग्र हिम्म्स्खलन में कभी दब जाओगे.
प्रेम के मायने ना ही जानो तो अच्छा है,
मत बोलो की वो झूठा है या सच्चा है.
हर सांस को आखरी सांस समझ कर जी लो,
क्यूंकि हर बूढे के अन्दर छिपा एक बच्चा है.
संभलोगे खुद तो नस्लें संभल जाएँगी,
वरना किस्मत शताब्दियों तक ठोकरें खिलवाएगी.
अपना जूता तो हमेशा काटता ही है,
किसी और के जूते में अपनी सपने तो डालो,
जिंदगी खुद बा खुद गद्दी सा मोजा बन जायेगी.