Friday, May 15, 2009

एक बाँध का सब्र

ज्यादा बुद्धिमान होना भी एक अभिशाप है
या कुछ ज्यादा ही पा लेना फिर पाप है
छलकोगे तो कहाँ बांटोगे अपनी आप को ?
यहाँ तो सर कटे शवों की भरमार है,
हर विक्रम के कन्धों पर बैठा एक वेताल है
बाँध का सब्र भी तो टूटता होगा कभी
उसके सीने में भी बह जाने का बीज उगता होगा कहीं
चलो आने दो उस पल को भी एक दिन अपनी और
छलकने दो, टूट और बह जाने दो उसे भी एक दिन
सारे वेताल अपने आप ही हवा में हवा हो जायेंगे
उस दिन कुछ सुकरात मरेंगे और कुछ यीशु पैदा हो जायेंगे

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