Tuesday, August 18, 2009

किस्मत का कुम्हार

मैं कौन हूँ? बस एक कुम्हार
जिसने तुझे मिटटी से प्याला बना डाला
अब ये तेरी इच्छा है की तू पूजा का दीप बन
या फिर बन मय का प्याला
पर मय से मदमस्त हो लोग प्याला गिरा तोड़ डालते हैं
पूजा के दीप फिर भी कुछ दिन और महीने जी जाते हैं
पूजा के दीपो को गिरने का भय नहीं होता
वो तो गंगा में ही बहाए जाते हैं
मिटटी की नियति है, वो फिर एक दिन मिटटी में मिल जायेगी
पर तब इस कुम्हार तक तुम्हारी पुकार पहुँच ही न पायेगी
जिस मिटटी से मैं बना हूँ, वो मिटटी भी मुझे कभी बुलाएगी
उसी मिटटी से फिर एक नया कुम्हार बनेगा,
और फिर कुछ प्यालों की किस्मत लिखी जायेगी

2 comments:

mayank.k.k. said...

अच्छी कविता लिख दी आपने थोड़े से शब्दों में बहुत ऊंची बात कह डाली
9415418569

Paddy Deol said...

Thank You mayank ji.