Monday, August 16, 2010

धाकड़ बनवारी

तेरी याद खटमल सी चुपके से काट जाती है
कभी मच्छर बनी कानो में पास आ भुनभुनाती है
कछुवा छाप अगरबत्ती रुपी, दारु भी कुछ न कर पाती है
मुई शाम को चढ़ती है, और सुबह सेंसेक्स सी उतर जाती है
कभी पड़ोसन के बालों, तो कभी भजियावाले के टिंडे देख सताती है
अब तो तू मुझे कालोनी की कुतिया में भी नज़र आती है
ढाई अक्षर प्रेम का, साला अढाई लाख का बिल ले आया
अपने सारे बॉय फ्रेन्डों के रीचार्ज कूपनों का
कमीनी तुने मुझसे ही बिल भरवाया
हाय रे दैया, तुने मुझे ये क्या दिन दिखलाया
सेकंड हैण्ड मारूति कार से, तेरा इश्क मुझे साइकल पर ले आया
अब तूने सिम कार्ड ही नहीं, हैंडसेट तक बदल डाला
मुझ बनवारी लाल को छोड़, तूने बाबु धाकड़ से नाता जोड़ डाला
मेरा नेटवर्क जाम कर, तू तो एस .एम्म .एस सी फुर्र हुई
मेरी मज्नुई आशिकी तुझ फूलन देवी के आगे थक कर चूर हुई
पर मैं भी छोरा यू पी का, घुटने न टेक पाऊंगा
तेरे छिछोरे हैंडसेट से बढ़िया, एक और नई पटाउँगा
एस एम् एस गया भाड़ में , ईमेल से काम चलाऊंगा
बनवारी लाल से नाम बदल मैं भी "बैनी" बन जाऊंगा
सैकंड हैण्ड मारूति की जगह अब "नैनो" खरीद ले आऊंगा
और तुझे और तेरे धाकड़ को गज भर लम्बी जीभ दिखा चिढाऊंगा