Saturday, August 14, 2010

लालता प्रसाद का ख्वाब

लालता प्रसाद पड़ोस के बनिए के पास गया
उसके हाथ में था कड़कता फडफडाता रुपये पांच सौ का नोट नया
आटा दाल चावल सब खरीद डाले पर बनिए ने वापस रुपये चार सौ दे डाले
लालता का सर चकराया, उसे बनिया भूत सा नज़र आया, बोला
"लालाजी दारु वारु तो नहीं पिए का ? बनिया मुस्कुराया, सर हिलाया
"लालता जी अब ऐसा ही राम राज आया है, सरकार ने सब सस्ता कराया है"
लालता बौखलाया सा आगे बढ़ा, उसकी उमीदों का और नज़ारे देख पारा चढ़ा
देखा तो पुलिसवाले सब फड वालों से हाथ मिला रहे थे
उनकी रेडियों को कंधे से कन्धा मिला धक्का लगा जोर लगाके हैया गा रहे थे
सारे पदियाते नलके एकाएक दमकल के पाइप बने पानी छोड़ रहे थे
सारे नेता गलियों में तिलचट्टे से उल्टे पडे अपना दम तोड़ रहे थे
बिजली सास की तरह घर छोड़ने का नाम न लेती थी
सरकार खुद लोगों के घर आ लोन देती थी
न कहीं कूड़ा था और ना ही कहीं अंधेर
लडकियां रातों घूमती थी, न थे कोई बलात्कार और ना ही बचे काणे शमशेर
प्रधानमन्त्री खुली जीप मैं आता था,
हर एक का हाल बिना टेलीविजन वालों को साथ लिए घर घुस पूछ कर जाता था
हर भ्रष्ट नेता को कुत्तों से कटवाया जाता था
और फिर उसका बचा खुचा पिछवाड़ा, कसाइयों में नीलाम करवाया जाता था
हिन्दू के घर मुसलमान, और सिख के घर इसाई गले मिलते थे
ईद, दिवाली, गुरुपर्व, क्रिसमस पर सबके घर दिए जलते थे
बरसात की तेज झड़ी ने एकाएक लालता प्रसाद को झंकझोर दिया
मन तो बच गया पर लुंगी और चेहरे में कोई कुछ निचोड़ गया
आंखें खुली तो देखा बगल में जाफरानी की बोतल लुड्की पड़ी कूक रही थी
और लालता प्रसाद के मुहं पर महंगाई बनी बस्ती की काली कुतिया मूत रही थी

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