Wednesday, March 11, 2009

मुंबई की होली

आज धरती पर से वो खूं के निशाँ धुल गए
पक्के रंगों में कई फल फूल और मिटटी के रंग घुल गए।
किसी ने पिनक में, , किसी ने बिना पिनक में धो डाले,
आज किसी ने उन खूं से सींची धरती पर फिर से बीज बो डाले।
होली का बहाना था, कुछ न कुछ तो कर दिखाना था,
जीवन तो चलता है चलता रहेगा, जीवन को ये बताना था।
सो गुलाल मला गया, रंग छिडके गए, बाजे बजे गाजे बजे,
लोग आये गले मिले, मोहल्ले गली दुल्हन से सजे।
बहुत से घरों में आज भी मातम था,
वहां मरने वालों की तस्वीरों की मालाएं सूख गई थी।
सिर्फ चार पाँच महीने पहले की तो बात है,
मुंबई में कुछ सौ घरों में जिंदगियां रूठ गयी थी।
बहुत सी मोमबत्तियां जलीं, बहुत सी कवितायेँ गडी,
कितने ही भाषण हुए, कितने ही जुलूस निकले।
सिर्फ चार पाँच महीने पहले की तो बात है,
कोई बोला था "अब और नहीं"
सिर्फ चार पाँच महीने पहले।

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