Wednesday, January 6, 2010

एक सुबह का आविष्कार

सुबह कई बार खुद नहीं आती
सुबह कई बार पैदा की जाती
खुद सूरज को धकेल कई बार सूरज को लुडकाया जाता
तभी उसे पहाड़ों से धकेल धकेल किसी तरह सुबह उगाया जाता
चाँद को किसी तरह समझा बुझा कर, तारों को घुट्टी पिलाकर
उन्हे किसी तरह सुलाया जाता
क्यूंकि सुबह कई बार खुद नहीं आती है
सुबह किसी तरह कई आंसू रोने के बाद पैदा की जाती है
आज मैने एक नई सुबह खुद ही बना डाली
खुद ही को हार मैने किसी अपने को जीत दिला ही डाली

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