हम तो साँसे लेने को उतारू हैं 
पर वो ही हमें छोड़ चली जाती हैं 
क्या हमारे हिस्से में इतनी हवा भी नहीं ?
रोज गूंथता हूँ  अपने सपने 
पर बडे नमकीन हो चले हैं 
मालूम न था आंसुओं में इतना नमक होता है 
सोचा था दरिया ऊपर ओढूँ  लूँगा 
मगर वो भी छलक गया
सर्द हुआ मौसम बहुत 
मुआ सूरज भी तो जम  गया
राख छानता हूँ कुछ कंकड़ बीनने हैं 
उसको मारने का कोई तो हथियार हो 
हर तरफ आग  लगी है 
अब तो आँखों से भी छिड़कने को कुछ न बचा 
आते हो और चले जाते हो 
सांकल तो खडका दिया करो 
थोडी ही सही,  कुछ तो खामोशी टूटेगी
कल सूरज मेरे घर चंदा मांगने आया 
बोला कुछ आग दे दो, बहुत तंगी है
मैने अपनी हिस्से का दिल तोड़ कर दे दिया 
अब तेरे वाले हिस्से से ही जी रहा हूँ 
देखना कल कमबख्त दुनिया फूँक डालेगा
सामने से आया और बगल से ही खामोश  निकल गया 
चलो इतना तो अदब दिखाया की अपनी खुशबू छोड़ गया 
इन्ही सड़कों पर तो चले थे साथ हम कभी 
अब ये सड़कें तंग हुई तो सड़कों का क्या कसूर ?
रात आई, मेरे चेहरे पर  कुछ ठंडी बूँदें गिरा गई 
जब आंख खुली तो गर्म आंसू थे गालों पर 
कमबख्त को रोना भी ढंग  से नहीं आता  
भला आंसू भी कभी ठंडे होते हैं? 
जिन्दा डूबा तो कैसे? 
मुर्दा तैरा तो कैसे ?
क्या सांसें ही इतनी भारी थीं ?
मरते की आंखें अब  बंद क्यूँ करते हो
क्या डरते हो मुर्दा दिमाग तक न देख ले ?
जिस्म छोड़ उड़ गया परिंदा 
अब दूर से पास वाले को देखेगा 
बडे राज खुलेंगे, एक नया षडयंत्र अब उगेगा 
मैं तो उड़ गया  हु फिजाओं में 
तेरा चक्र तो अब भी चलेगा 
दिल की धीमी आंच पर 
चढा  दिए हैं कुछ सपने
पक जायें तो उतार लेना 
ध्यान रखना कि दिल जलता रहे !!!
अखबार सा ताबड़तोड़ पढ़ डाला मुझे 
काश में एक मोटा उपन्यास होता  
अब जो होगा वो उन्हें भी मालूम और मुझे भी.
हम वो हैं जो आंसू भी फूंक फूंक निकालते हैं
क्या करें उन्होने  बनिया जो बना दिया 
वरना एक वो आलम था 
जब बारिश को देख हम हंसा करते थे 
बारिश में बबूल उग आया है 
पहले तो इतनी न चुभती थी 
शायद उसने अपने उसूल बदल लिए होंगे
वरना पहले तो बड़े अदब से बरसती थी 
मिटटी कि गुल्लक लगता है भर गई 
जिन सिक्कों को एक एक कर जमा किया 
वो नोटों में सिमट जायेंगे 
फिर कुछ गोताखोर गंगा में दुबकी लगायेंगे 
फिर कुछ और सिक्के मेरे पास आ जायेंगे
धधकती कोलतारी सड़क मेरे पाँव का नाप ले गई, 
या खुदा क्या अब जूते भी मेरे ही नाप के मारोगे?
2 comments:
हुनर यह कलम का नहीं, दिल का है पर फिर भी कहता हूँ की तेरी कलम का बुलंद इक़बाल रहे
आपकी होंसलाअफजाही का तहेदिल से शुक्रिया
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