Thursday, January 29, 2009

आज मन है

आज कुछ नया कर जाने का मन है
बादलों के उस पार अंगीठी जलानी है
चिडियों से कैद पिंजरे को आजाद करने का मन है
किसी मछुआरे से मांग उसकी पतवार चलानी है
किसी को लोरी सुना ख़ुद सो जाने का मन है
आज हवा में भी किसी की तस्वीर बनानी है
अन्तरिक्ष में आज पतंग उडाने का मन है
किसी बच्चे सी कूदफांद लगानी है
किसी दुखियारे अजनबी के गम भुलवाने का मन है
तितलियों से कुछ रंग उधार मांगने हैं
छोटी सी बात पर किलकारी लगाने का मन है
मदारी के बन्दर को भाग जाने की तरकीब सिखानी है
माँ की प्यार में पकाई वो दाल और बासी रोटी खाने का मन है
आज कुछ पुरानी किताबों की धूल हटानी है
बागीचे से कुछ आम आज चुराने का मन है
गली के आवारा जानवरों को आज पुचकारना है मुझे
सरपट दौड़ती दुनिया में आज थम जाने का मन है
राख से महल बनाने हैं मुझे, बारिश के पानी में चपाके लगाने हैं मुझे
आज ख़ुद पर ही मर मिट जाने का मन है
बहुत सुरीले गीत सुने जीवन में, आज कुछ बेसुरा सुनाने का मन है
दूसरों को पाने के लिए दोडते रहे जिंदगी भर
आज ख़ुद को ढूंढ कर पा लाने का मन है
मुश्किलों को सीख देने की जुगत लड़ानी होगी
आज मन के मटके से जिंदगी पी और प्यास बुझाने का मन है

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