Saturday, January 31, 2009

सत्य के जीवाणु

कौन कहता है दुखों की हार नही होती
दुखों को भी दुख लगते देखा है मैने
जब जब दुखों ने अपनी झुग्गी झोपडी मेरे आँगन बनाई
अपनी कीताणुओ से मेरे घर के कोने कोने बीमारियाँ फैलाई
मैने सत्य रुपी जीवाणुओं से उनके कीटाणु लड़ाए
हर बार सत्य के जीवाणुयों ने उनकी चौखट विजय ध्वज फहराए
सत्य बेहेरूपिया होता है, झूठ का सिर्फ़ एक ही रूप होता है
वो छिप नही सकता ज्यादा दिन, सत्य छिपा रहकर ही मूक होता है
दुखों की नीयति कुछ ऐसी है की उनके ही कीटाणु उन्हें खा जाते हैं
दुखी होकर कुछ लोग सत्य को हमेशा पा जाते हैं
बस चुनिन्दा ही ऐसे लोग हैं जो ये सब कर पाते हैं
बाकी दुःख की धूप तले उसकी ही फसल बन पक् जाते हैं
कुछ ऐसे ही चुनिन्दा लोग मेरी मन की किताब में जमा हैं
कुछ राजा हैं कुछ रंक उसमें उन्ही में जीवन रमा है
ऐसे ही कुछ लोग कभी अपनी सेना बड़ी बनाएँगे
दुखों के मजबूत किले को तोपों से मार गिराएंगे

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