Saturday, January 31, 2009

लंका की अयोध्या

मंदिरों में घंटियाँ बजने लगी हैं
शाम जरा सी ढलने लगी है
पंछी लौट चले अपने अपने घरोंदों में
हवा सर्द चलने लगी है
कहीं दूर मन्दिर में कोई गा रहा है
अपने दिल का राग भजन बना, और ख़ुद मेनका बन
भगवान् को रिज्हा रहा है
क्या मजे की बात है, दिन भर राक्षस बने उत्पात मचाओ
और शाम को मेनका बन घुंघरू बाँध हाथ जोड़ प्रभु के आगे खड़े हो जाओ
चबाना सबकुछ चाहते हो और मुह में दांत नही हैं
आंखें मूँद पाप करते हो, जैसे भगवान् की आँख नही है
तुम असल में राम की नही मेनका की साधना करते हो
हर पाप को छिपाते, श्रीराम से तुम न डरते हो
पहले जय सीताराम कह कह सबका अभिवादन करते थे
सीता को तुम अब भूल गए, पहले उनके नाम के मनके जपते थे
राम को भी एक दिन भूल जाओगे, या कहो राम तुम्हे भूल जायेंगे
फिर किसका नाम लेकर दूसरों का अभिवादन ले दे पाओगे ?
सिर्फ़ राम का नाम लेकर तुम्हारा काम न चल पायेगा
किसी दिन तुम्हारी लंका जलाने फिर कोई हनुमान आयेगा
रावन होते हुए राम न जपो वरना कागज का पुतला बन जल जाओगे
मेघनाथ, खर, दूषण, कुम्भकरण सी गति तुम पाओगे
राम सिर्फ़ एक नाम नही एक दिव्या ज्योत सी अनुभूति है
अच्छे करमों वालों से ही प्रभु राम को सहानुभूति है
इतना ही राम का नाम लेना है तो जा किसी भूखे को रोटी खिला
अपनी दया के प्याले से किसी प्यासे को पानी पिला
तुझे तब किसी पत्थर के घर में राम ढूँढने न जाना पड़ेगा
राम ही तेरे घर आ जायेगे, आवाज़ तो दे उन्हे आना ही पड़ेगा
दूसरों के दुःख दर्द बाँट तेरे ख़ुद के दर्द दूर हो जायेगे
फिर हर पेड़ पत्थर हवा बगीचे सड़कों पर तुझे राम ही राम मिल जायेंगे

No comments: