Saturday, January 31, 2009

बुद्धिमान इंसान

सुना है कोई विपदा ही इन्सान को इंसान बनाती है
ये भी सुना है की इंसान बुद्धिमान प्राणी है
तो फिर बुद्धिमान को विपदा का इंतज़ार क्यों रहता है?
वो क्यों अपनी दंभ रुपी मांद में छिपा रहता है
महंगे जूते चप्पल कपड़े लत्ते कार बंगले मोटरगाडी पाकर
गीदढ़ सी भभकी दिए फिरता है दूसरे गीदडों के घर जाकर
कोई आपदा आती तो आँखों में आंसू निकाल बैठता है
कुछ दिन कुछ वक्त तक मन्दिर में गिरजा मस्जिद गुरुद्वारा बना बैठता है
अपनी मोटरगाडी की शीशे के उस पार की जिंदगी को निहारता है
शीशा कभी गिरा कभी उठा अपनी ही बनाई बदबुओं को धिक्कारता है
कभी कोई अर्थी दिखे तो हाथ जोड़ खुदा को रिश्वत देता है
एक हाथ से अमृत पाता दूसरे से जहर देता है
कभी छाती में दर्द होता तो हकीम वैध को पुकारता है
दूध पिलाती छातियों को देखो वो कैसे निहारता है
इसे कोई न समझा, न ख़ुद समझ पायेगा
बुद्धिमान प्राणि है, एक दिन इसे ख़ुद समझ में आ जाएगा
ये तब समझेगा जब इसका सब नष्ट हो जाएगा
अफ़सोस तो ये है की अपने साथ साथ ये सबको नष्ट कर जाएगा
ये बुद्धिमान प्राणी है भला इसे कौन समझायेगा
इसकी जटिल सी बुद्धी में भला गंवार सरल सत्य क्यों आयगा ?

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