Thursday, January 29, 2009

एक शराबी की चिढ

आज कुछ अलग ही खुमारी है
वो लम्हे वो जाम वो दाल बुखारी है
पीना चाहते थे एक और जाम,
कमबख्त नशे ने अडंगी दे प्याला ही गिरा दिया
नींद तो कैसे आनी थी आज तो साला नींद को भी पिला दिया
अब सोचते हैं की मैखाने को रुखसत करें
साला कुछ तो है नही करने को, अब कुछ तो करें
कहीं ऐसा न हो की कंही सरकार ठेका ही बंद करा दे
मेरे नशीली अरमानो की चिता बीस पैसे की माचिस से जला दे
जिन्हे जलाना था उन्हे तो हार पहना रही है
साली दो टके की सरकार देखो कैसे मर्सडीज में जा रही है
मारे हुवो का मातम जाम पीकर मना रहा हूँ
सारे टोपी वाले हिजडों की कबर खोद खोद बना रहा हू
मैने बस चार जाम पीकर ईद मना ली
इन्होने तो खून पी मेरे देश की इज्ज़त लुटवा दी
सोचता हूँ आज कुछ कर जाऊँ
टूटे हुए स्कूटर में बम रखकर इन सालों के घर घुस जाऊँ
पर साला जितने का बम उतने में तो हजारों जाम आयेंगे
मेरे एक के मरने पर तो ये टिद्धियों की तरह सैकडों पैदा हो जायेंगे
चलो ऐसे ही मन की भडास निकालते हैं
एक जाम फालतू पीकर सालों की मय्यत निकालते हैं

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