Thursday, January 29, 2009

किलकारी

कुछ ख्यालों की स्याही ला दो
कुछ विचारों को पंख लगा दो
तख्ती है अभी खाली खाली सी
उसपर मेरे बच्चे की तस्वीर बना दो
लिख पाउँगा तभी मैं फिर से
मेरे घर में फिर वही किलकारी ला दो
हंसुगा हंसाऊंगा फिर से मैं
मन में बसे बच्चे को भिगाने के लिए, एक पिचकारी ला दो
सोना नही चाहता क्यूंकि उसे आज लोरी सुनानी है
मेरी नींद को सुलाने के लिए एक खुमारी ला दो
फिर से लिख पाउँगा तभी में
मेरे घर में फिर वही किलकारी ला दो
आसमा से तारे परोसने हैं बाकी
कुछ परियों से मुलाक़ात करानी है उसकी बाकी
बादलों से पानी की बूँदें तोड़ तोड़ कर लानी हैं
उसके सिरहाने गुलाब की पंखुडियां भी तो बिछानी हैं
बनिए से शहद खरीद उसकी नींदों में मिलानी हैं
होली पास आ गई, उसके सपनो को थोड़ा रंग लगा दो
फिर से मेरे घर में वही किलकारी ला दो
मेरी बिटिया रानी रूठी क्यूँ है मुझसे
उसको मनवाने वास्ते एक फुलवारी उगा दो
फिर से मेरे घर उसकी किलकारी ला दो

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