Sunday, February 1, 2009

मुर्खता का डब्बा

देखो देखो लोग अपना दिमाग बंद कर टीवी खोल रहे हैं
किसी दूसरे के विचार किसी दूसरे के तराजू में तोल रहे हैं
शाम ढलते ही बत्ती जला, दिमाग बुझा, मूर्खों का पिटारा खोल रहे हैं
किसने किसकी भगाई लुगाई की ख़बर, अपनी लुगाई से बोल रहे हैं
समाचारों से उपहास टपकता है, नेता जोकर से लगते हैं
नेताओं की छोडिये जनाब, प्रधानमन्त्री भी नौकर से लगते हैं
कितने मारे, मरे, घायल, बीमार हुए का रिवाज पुराना हुआ
मीडिया जगत अब पराई औरतों जैसी सनसनी खबरों का दीवाना हुआ
अगर ये सनसनीखेज है तो सोचिये असल सनसनीखेज क्या होगा
और यही निरंतर चला सब तो आने वाली नसल का क्या होगा
एक नेता की "बाईट" लेने ये कैमरा ताने कतार में खड़े हो जाते हैं
एक भूखे मरते किसान की ख़बर लेने ये हफ्ते बाद जाते हैं
महत्त्वपूर्ण क्या है? क्या ये हमें सिखलाएंगे, बतलायेंगे?
क्या हम ही दिमागी लल्लू पंजू हैं कि जो ये कहें मान जायेंगे?
शनि कौन सी करवट बैठेगा, आज काल सर्प योग किस को डसेगा
गर ये समाचार हैं, तो हमें ही एक दिन समाचार बना ये हमपर हंसेगा
मसालेदार सनसनी को सोच में न बसाओ, घटिया उपज आँगन न उगाओ
अमिताभ काटे बाल, नेता की जली खाल सी खबरें अपने घर ना घुसाओ
खबरें शनि, शाहरुख़, मंगल, कैटरीना से तंत्रों मंत्रों का सहारा नही लेती
वे तथ्य उजागर करतीं हैं, बंद कमरों से सनसनी को जनम नहीं देती
आज पिटारा खुलने के साथ साथ थोड़ा दिमाग भो खोलना
स्वयं समझ जाओगे कि ये उसका भोंकना है या बोलना

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