Tuesday, February 3, 2009

मेरे देश का शेर

सर पर पगड़ी पहने वो भीड़ में भी अलग दिख जाता है।
हाथ में कडा, सर पर लम्बे केश, बगल में कटार लगाता है।
हर वक्त वो मुस्कुराता रहता, कोई ना कोई गीत गाता रहता,
उसका न कोई आने का समय, न किसी को जाने का पता रहता।
उसके गौरव से पुलकित चेहरे पर हर मौसम पसीना बहता।
बिना नागा हर मौसम वो सुबह सुबह गुरुद्वारे जाता, वहां झाडू लगाता,
गुरु को शीश झुकाता, लोगों के जूते उठाता, गुरु का लंगर चख्वाता।
चाहे हिंदू हो, ईसाई या फिर हो वो मुसलमान,
किसी ना किसी के काम वो जीवन में एक बार जरूर आता।
ख्वामखाह के जुलूसों और जलसों से उसे परहेज है,
झट पैसा कमाने की उसकी व्यापारिक विद्या की बुद्धि बड़ी तेज है।
ऐसे किसी भी जुलूस में वो शायद ही नज़र आयेगा,
गर आया भी, तो छोले कुलचे बेच भूखी भीड़ को, घर कमा पैसे ले जाएगा।
शायद ही ऐसा इंसान देखोगे जो अपने ही ऊपर बनाये चुटकुलों पे हंसता है,
जरा सी मुसीबत उसके दोस्तों परिवार पर आयी नही, वो फ़ौरन कमर कसता है।
किसी महकमें में ये मंझला या उंचा अधिकारी बना, शेर सी मूंछों पर ताव देता नज़र आयेगा,
एक ही कौम है अकेली इसकी जिसमें, कोई भीख मांगता नज़र न आयेगा
हर महफिल में सबसे पहले नाचने वाला ही वो होता है,
ढोल की एक थाप पर ही उसका भांगडा शुरू होता है।
किसी से कोई जुगाड़ ना बन पा रहा हो, उसके पास चले जाओ,
उसके पास हरदम कोई न कोई जादू का पिटारा होता है।
चाहे समंदर हो, बर्फ की पहाडियां हों या हो जलता रेगिस्तान,
कहीं भी वो जरूर दिखेगा चाहे विलायत हो या बलूचिस्तान।
चाँद पर भी कहतें हैं उसने कोई ढाबा खोला है,
अब ये सच है या झूठ, मुझसे तो किसी ने ये बोला है।
विभिन्न रूपों में ये शख्स हमारे आसपास ही रहते हैं,
प्यार से हम लोग इन्हे सत्श्री अकाल "सरदारजी" कहते हैं। ,

1 comment:

Anonymous said...

wah..bahut jivan main utsah aa gaya pad ke..sach hi likha hai !!!
arun chandhok