Monday, February 2, 2009

बन्दर जलाए नेता

ये नेता रुपी कीटाणु हर जगह मिल जाता है
बैलगाडी के लायक नही फ़िर भी मर्सडीज में जाता है
हमारा ही दिया खा फिर हम पर ही गुर्राता है
हमारे घर में चोर सी सेंध लगा चुनाव के पर्चे फ़ेंक जाता है
मंच मिले तो भोंकता है, हमारे ऊपर उल्टे सीधे कानून थोपता है
पर अपने बच्चों को दूसरों का, बलात्कार करने से नही रोकता है
कभी फौजी की वर्दी बेच आयेगा, कभी तोपों का कमीशन खायेगा
स्विस बैंकों के अपनी खातों में कन्हैयालाल की कमाई जमा कराएगा
पीएगा मिनेरल वाटर, और गावों गावों पानी पहुचाने के वादे करेगा
हमारे टैक्स के पैसे से अपने नाती पोतों के मोबाइल बिल भरेगा
नाटकबाजी में तो ये भांडों को भी मात देता,
अपने सगे भाई की सुपारी किसी और "भाई" को देता
हर कहे वाक्य को नकारता, हर पार्टी फंड में चंदा देनेवाले को पुकारता
हर सच्चे अधिकारी को सुकरात की तरह ज़हर दे मारता
इसकी लंका में राक्षसों की भरमार हैं,
सफ़ेद टोपी पहने ये जनता का पहरेदार है
नेताजी अब सुधर जावो, हवा कुछ सुहानी चली है
नई पीड़ी अंडे से बाहर निकल झंडे फहराने चली है
कहीं ऐसा न हो तुम भोंकते रहो और कोई पीछे से च्यूंटी लगा जाए
कोई पुराना वानर आ चुपके से तुम्हारी लंगोट सी लंका में आग लगा जाए

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