Monday, February 2, 2009

काली हुई नदियाँ

कल बच्चों के एक स्कूल में चित्रकला प्रतियोगिता देखी
नन्हे नन्हे बच्चे कल्पनाओं की उड़ान लगा रहे थे
कुछ हाथी घोडे, कुछ नदिया, पहाड़ आसमान बना रहे थें
पहाडों को हरे की बजाये भूरा बना रहे थे
आसमान व नदियों को भी नीला न कर काला बना रहे थे
उनकी आँखें जैसा देखेगी भला वैसा ही तो बनाएगी
उन नन्हों को क्या पता की ये दुनिया क्या थी, हुई,व हों जायेगी
कभी हम भी तो उन नन्हों से थे जब पहाड़ हरे भरे थे नदियाँ नीली थी
उनपर बसंत में गिरे पेडों की पत्तियाँ पीली थी
आज ऐसा क्यों की हमारे बच्चों को उनके वास्तविक रंग पता नहीं
अभी तो कुछ बचाखुचा है, बाकी, कल होगा क्या, ये भी पता नहीं
खाली पर्यावरण बचाओ के नारे लगाने से कुछ ना होगा
एक हाथ से ले एक हाथ से दे वाला नियम ही यहाँ लागू होगा
ले तो बहुत लिया हमने अब क़र्ज़ उतारने की बारी है
बताओ अपनी दुनिया को इस बार फिर बचाने की हमारी कितनी तैयारी है

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